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02 November 2018

न होतीं बेटियाँ अगर तो

न होतीं बेटियाँ अगर तो
कन्या पूजन कैसे करते ?
न पढ़तीं  बेटियाँ अगर तो
बुढ़ापे में भजन कैसे करते ?
न बढ़तीं बेटियाँ अगर तो
पूरे सपने कैसे करते ?
न होतीं बेटियाँ अगर तो
सबके रिश्ते कैसे होते ?

वो दौर गया जब बेटे ही
जीने का सहारा होते थे
वो दौर गया जब बेटे ही
आँखों का तारा होते थे
वो दौर गया जब बेटे ही
आसमां को चूमा करते थे
वो दौर गया जब बेटे ही
सरहद पर झूमा करते थे

ये दौर नहीं कि बेटी को
दुनिया में कोई न आने दे
ये दौर नहीं उसके सपनों को
आकार न कोई  लेने दे ।

ये दौर है कर्ता-धर्ता का
और उसकी आत्मनिर्भरता का
ये दौर है साझी समता का
उसकी विलक्षण क्षमता का।

ये दौर है नारी शक्ति का
उसके मन की अभिव्यक्ति का
किसी मंदिर की मूरत नहीं
पर उसकी सच्ची भक्ति का।

-यश©

इन पंक्तियों के लिए मुझे मेरे संस्थान द्वारा स्मृतिचिह्न एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित किया गया। 

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