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21 June 2019

किश्तों में बंटी जिंदगी

न रिश्तों में न फरिश्तों में
जिंदगी बंटी है किश्तों में
जिन्हें चुकाने की हसरत
दिल में लिए
बीत जाती है उमर
चंद मिनटों में।

छन-छन कर मिलती
तनख़्वाह में जीना है
बेशर्म ई.एम. आई. की
न कोई सीमा है
मकान मालिक के ताने
सुनते हुए
सीढ़ी दर सीढ़ी
रोज़ चढ़ना
और उतरना है।

ये क्या है ?
जो चारों तरफ फैला हुआ
किसी मुकाम पर कोई
रोता हुआ-हँसता हुआ
कहीं मुखौटों के भीतर
सच के चेहरे हैं
मिथ्या अँधेरों पर
उजालों के पहरे हैं।

हूँ शर्मिंदा कि
क्रेडिट कार्ड के इस दौर में
मिट रही है लकीर
आम और खास की
क्योंकि किश्तों में बंटी
जिंदगी में
बहुत ज़्यादा है कीमत
किसी प्यासे की प्यास
और हर उखड़ती साँस की।

-यश©
21/जून/2019

4 comments:

  1. आज के कटु यथार्थ को व्यक्त करती प्रभावशाली रचना

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  2. आज की हकीकत .... बहुत अच्छी रचना

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  3. अच्छी रचना

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