बेतरतीब खिंची लकीर की तरह
ज़िंदगी लगती है जंजीर की तरह ।
वक़्त की पैनी धार पर रगड़ते हुए
डरता है दिल भी अब धड़कते हुए ।
है आलम यह कि फासले ये कहने लगे
जो अब तक थे आदम अब बदलने लगे।
मिलता नहीं अब कोई फकीर की तरह
दीवारों पर सब लटके हैं तस्वीर की तरह।
-यशवन्त माथुर ©
14/01/2020
ज़िंदगी लगती है जंजीर की तरह ।
वक़्त की पैनी धार पर रगड़ते हुए
डरता है दिल भी अब धड़कते हुए ।
है आलम यह कि फासले ये कहने लगे
जो अब तक थे आदम अब बदलने लगे।
मिलता नहीं अब कोई फकीर की तरह
दीवारों पर सब लटके हैं तस्वीर की तरह।
-यशवन्त माथुर ©
14/01/2020
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