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04 February 2024

40 पार के पुरुष - 2

जिम्मेदारियों का बोझा ढोते 
40 पार के पुरुष
जीवन के 
तिलिस्मी रंगमंच पर
चाह कर भी नहीं निभा सकते
खुद का मन पसंद किरदार
वो तो बस
कठपुतली होते हैं
नाचते रहते हैं 
किसी और की 
थामी हुई डोर के सहारे
ढूंढते रहते हैं किनारे
करते रहते हैं
पुरजोर कोशिशें 
जानकर की हुई 
अनजान गलतियों के 
निशान मिटाने की।
40 पार के
कुछ पुरुषों की
पटकथा 
फूलों के सपनों
और कांटों की वास्तविकता 
को खुद में समेटे हुए
सिर्फ अनिश्चित ही होती है।

-यशवन्त माथुर© 
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2 comments:

  1. चालीस या पचास की बात नहीं है, यहाँ हर कोई कठपुतली है किसी अज्ञात डोर में बंधा हुआ, जो जाग जाते हैं वे देख लेते हैं कि डोर है किसके हाथ में

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  2. बहुत सुंदर

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