जो रूप धरे रहते हैं
दोस्त का
दोस्त नहीं होते
बल्कि
होते हैं प्रतिरूप
भेड़ की खाल में
भेड़िए के चरित्र का।
ऐसे लोग
स्वजन
स्वजात की बातें
जुबान पर रखते तो हैं 
मगर
होते हैं 
एक कदम आगे  ही
पराएपन की
मन में रची-
बसी सोच के।
ऐसे लोगों से पार पाना
असंभव तो है
लेकिन समय पर 
अगर भांप लिया जाए 
इनकी मंशा को
तो नामुमकिन नहीं
विजय 
अग्निपरीक्षा के
कठिन दौर में।
✓यशवन्त माथुर©
04 जनवरी 2025
 
 
 
सच है |
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