कुछ ऐसा करें
कि मुरझाए चेहरे मुस्कुराएं
आओ आज एक दीप जलाएं।
एक दीप
जो समरसता का हो
सबकी साझी सभ्यता का हो।
जगमगाएं जिससे
दसों दिशाएं
आओ आज एक दीप जलाएं।
एक दीप
जो भरे उजास
हर गरीब की देहरी पर।
और जिसकी लौ से
अमृत बने
मिट्टी के कच्चे चूल्हे पर।
जिसकी तपिश
तमस मिटाकर
सबके सारे भरम हटाए
आओ आज एक दीप जलाएं।
यशवन्त माथुर
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