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25 November 2013

अजीब सी तस्वीर.....

कौन है वो
अनजान  ?
बिखरे बिखरे बालों वाला
जिसका आधा चेहरा
किसी पुरुष का है
आधा किसी स्त्री का
और उसका धड़
अवशेष है 
किसी जानवर का ....

न जाने कौन
बनाता  है
मन की काली दीवार पर
सफ़ेद स्याही से 
यह अजीब सी तस्वीर
जो दिल के दर्पण मे
परावर्तित हो कर
कराती है एहसास
सदियों से
चेहरों को ढकते
मुखौटों की चमक के
फीका होने का। 

 ~यशवन्त यश©

5 comments:


  1. वाह!!! बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है--
    आशाओं की डिभरी ----------

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  2. कई बार रचना पढी. हर बार एक नया अर्थ और तस्वीर. अर्धनारीश्वर, कोई मसीहा, कोई आदि मानव... शायद आज का मनुष्य ऐसा ही है, मानव होकर भी जानवर का सा तन... पता नहीं मनोभाव को समझ पाई या नहीं, लेकिन रचना बहुत अच्छी लगी. बधाई.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति- यशवंत..

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  4. स्वप्न में शायद ऐसा ही कुछ भी दिखाई देता है...

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  5. मुखौटे फीके हो जाएँ तभी तो वह झलकेगा जो वास्तव में है जो न स्त्री है न पुरुष न कोई अन्य प्राणी...जो पुकारता है किसी अतल गहराई से...हर पल

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