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09 November 2013

ऑर्केस्ट्रा ......


Photo:Yanni-'Tribute'














अलग अलग साज
सबकी अपनी अलग आवाज़
उनको बजाने वाले जादूगर
जाने कौन सी छड़ी
लिये फिरते हैं हाथों में
कि बन जाती है
सरगम में गुथी
एक सुरीली धुन

एक सुरीली धुन
जिसके उतार चढ़ाव
खुशी -गम
परिहास और उत्साह को 
थामे रह कर
कभी ढुलका देते हैं
पलकों से आँसू
और कभी
फड़का देते हैं
ललकारती बाहों को

ज़रूर
कोई अलग ही
शक्ति होती है 
ऑर्केस्ट्रा की तराशी हुई
अनगिनत मनकों की
एक संगीत माला में
जिसे फेरने के साथ ही
अस्तित्वहीन हो कर
इंसान
मिल जाता है  
रूहानी सुकूं की
मस्त हवा के झोकों में।

~यशवन्त यश©

13 comments:

  1. कमेन्ट करने पर मजबूर कर दिया इस पोस्ट ने... I just love podcasts.... बधाई हो.... :)

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  2. ab ye poem toh nahi hai aur naa hi prose hai .. par fir bhi to the point hai

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    1. सही कहा आपने,इसीलिए तो अपने लिखे को 'पंक्तियाँ' कहता हूँ। :)

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  3. kya upmayen hai sunder soch badhai
    rachana

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति |

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  5. behatarin abhiwyakti samwedana bhari
    rashk aata hai tere raksh pe allah mere,
    saz kahin aur sazinde na nazar aaya ghugharu

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  6. बहुत सुंदर काव्य पाठ...बधाई !

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। शुभकामनाएं

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