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07 March 2014

गहराती रात के सूनेपन में .......

गहराती रात के सूनेपन में
सरसराती आ रही है
एक आवाज़
कि कहीं से
झुरमुटों की ओट से
या किसी और छोर से 
जैसे
कोई पुकार रहा हो
किसी को;
कभी के भूले भटके को....
पर ना मालूम
सोते ख्यालों की इस भीड़ में
सुन रहा है कौन
किसकी आवाज़ ....
चाहता है कौन
किसका साथ
गहराती रात के सूनेपन में
अक्सर मिल जाते हैं
सुकून के
दो चार पल
जब हो जाती है मुलाक़ात
आसमान से बरसती
चाँदनी से या
चमकते तारों से
फिर आज....
अचानक यह आवाज़
जो है तो अपरिचित
फिर भी
न जाने क्यों
परिचित सी लगती है
हर बार
भटकता है
मन के भीतर का मन
पहचानने को
वह आवाज़ है ...
या कोई साज़
गहराती रात के सूनेपन में। 

~यशवन्त यश©

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।

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  3. अजीब सी कस्मकस

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  4. aise hota hai kabhi kabhi koi dur ho kar bhi paas nazar aata hai ...

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  5. यह आवाज लगती है दूर से आती...पर नजदीक से भी नजदीक है..मन के भीतर का मन...बहुत सुंदर पंक्तियाँ..

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  6. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
    सकारात्मक रचना
    हार्दिक शुभकामनायें

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  7. कोमल भावों कि सुंदर रचना...
    :-)

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  8. बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...

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