कुछ लिखने के लिए
विषयों की कमी नहीं
कमी हम में होती है
हम ढूंढ नहीं पाते
देख नहीं पाते
अपने आस-पास
बस सोचते रह जाते हैं
क्या लिखें
क्या कहें
कैसे कहें .......
क्योंकि
बातें तो सब वही
पसरी पड़ी हैं
हर ओर
जिन्हें और लोग
पहले भी कह चुके हैं
अपने शब्दों में
हम
बस खोजते रह जाते हैं
अपने शब्दों
अपनी शैली
और अपनी
आत्मा की आवाज़ को
बस कभी कभी
मनमाफिक शब्दों को
तरसते हैं
और जब
वह मिलते हैं
तब हम भी कहते हैं
बातें
अपने मन की।
~यशवन्त यश©
विषयों की कमी नहीं
कमी हम में होती है
हम ढूंढ नहीं पाते
देख नहीं पाते
अपने आस-पास
बस सोचते रह जाते हैं
क्या लिखें
क्या कहें
कैसे कहें .......
क्योंकि
बातें तो सब वही
पसरी पड़ी हैं
हर ओर
जिन्हें और लोग
पहले भी कह चुके हैं
अपने शब्दों में
हम
बस खोजते रह जाते हैं
अपने शब्दों
अपनी शैली
और अपनी
आत्मा की आवाज़ को
बस कभी कभी
मनमाफिक शब्दों को
तरसते हैं
और जब
वह मिलते हैं
तब हम भी कहते हैं
बातें
अपने मन की।
~यशवन्त यश©
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