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16 March 2018

मैं देवी हूँ-8 (नवरात्रि विशेष)

मैं!
बन कर रह गयी हूँ
पैमाना
सिर्फ
अपने रूप-रंग
और वाह्य आकर्षण का ही।

मुझे मापा जाता है
मेरे गोरा या काला होने से
पतला या मोटा होने से
लंबा या नाटा होने से
अनपढ़ या पढ़ा लिखा होने से ।

मुझे तोला जाता है
मेरे पिता की संपत्ति के तराजू में
जिसके एक पलड़े पर
होने वाले दामाद की
सरकारी नौकरी बैठती है
और दूसरे पलड़े पर
खैरात की कार,बाइक
और अन-गिनत अपेक्षाएँ
कोशिश करती हैं
संतुलन बनाने की।

खुद ही
खुद के हक से वंचित हो कर
इस विकसित युग में भी
कई बेड़ियों से
जकड़ी हुई हूँ
मैं ! देवी हूँ।

-यश ©
16/03/2018

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