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20 December 2020

कुछ लोग-53

अपने स्वार्थ में 
पर्दे के पीछे रह कर 
दूसरों के काम बिगाड़कर 
संतुष्ट हो जाने वाले... 
और प्रत्यक्ष होकर 
हितैषी जैसा दिखने वाले 
दोस्त के नकाब में 
दुश्मनी निभाने वाले 
कुछ लोग
आस पास रह कर 
जिसे समझते हैं 
भेद 
वह सिर्फ सुई होता है 
जो अपनी चुभन से
एक दिन  
बिखेर कर रख देता है 
उनका सारा सच 
और फिर 
कुछ नहीं बचता 
हर तरफ फैली हुई 
कालिख के सिवा। 

-यशवन्त माथुर ©
20122020

[कुछ लोग शृंखला की अन्य पोस्ट्स यहाँ क्लिक कर के देख सकते हैं]

12 comments:

  1. दूसरों के काम बिगाड़कर
    संतुष्ट हो जाने वाले...
    और प्रत्यक्ष होकर
    हितैषी जैसा दिखने वाले
    दोस्त के नकाब में
    दुश्मनी निभाने वाले
    सही कहा एकदम सटीक सुन्दर एवं सार्थक सृजन।

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  2. ..... और फिर
    कुछ नहीं बचता
    हर तरफ फैली हुई
    कालिख के सिवा।

    यही होता है सचमुच यथार्थपरक कविता

    साधुवाद🙏

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  3. बहुत बढ़िया

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  4. सटीक विश्लेषण किया है आपने ऐसे दोमुहे लोगों का। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।।।।।।

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  5. इन पंक्तियों को पढ़कर पता चलता है यशवंत जी कि आपने ज़िन्दगी को बह्त नज़दीक से देखा है । मैं आपके प्रत्येक शब्द से सहमत हूँ ।

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  6. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-12-20) को "शब्द" (चर्चा अंक- 3923) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  7. बहुत सही,ऐसे लोगों के साथ ऐसा होना भी चाहिए..सुन्दर सृजन..

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  8. यथार्थवादी लेखन

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  9. प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।

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