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05 December 2020

भूमि पुत्र है वो

वो 
जो खेतों में हल चला कर 
गतिमान करता है 
जीवन के चक्र को 

वो 
जो अपने पसीने की हर बूंद से 
सींचता है 
अपने भीतर के सब्र को 

वो 
जिसके होंठों की मुस्कुराहट 
उपजाती है 
हमारे कल की खुशियों को 

वो 
जिसके खेतों की कपास के धागे 
सूत बन कर ढल जाते हैं 
रंग बिरंगी पोशाकों में 

वो 
जिसे फिर भी 
मयस्सर होती है 
सिर्फ गुमनामी 

वो 
जो 
सबको 
सबका हक दे कर भी 
अपने हक के लिये 
राजधानी की सड़कों पर 
गिरते-पड़ते 
शैतानी पत्थरों के वार से 
बचते बचाते 
शहीद होकर 
कंक्रीट की सड़कों पर 
अपने खून से 
बना देता है 
प्रश्नचिह्न 

वो 
कोई और नहीं 
धरती के अंक से लग कर 
बिना कोई भेद किये 
सबकी एकता का सूत्र है वो 
भूमि पुत्र है वो।  

-यशवन्त माथुर ©
05122020 

13 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. वो
    कोई और नहीं
    धरती के अंक से लग कर
    बिना कोई भेद किये
    सबकी एकता का सूत्र है वो
    भूमि पुत्र है वो।
    बहुत सुंदर।

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  3. यथार्थ को शब्दों के माध्यम से चरितार्थ करती कविता ।उत्कृष्ट रचना।

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  4. यथार्थ को शब्दों के माध्यम से चरितार्थ करती कविता ।उत्कृष्ट रचना।

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  5. वाह! बेहतर सृजन सराहनीय सर।

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  6. बहुत सुंदर

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  7. सही कहा कृषक भूमि पुत्र है.....
    कृषक के चरित्रार्थ को व्यक्त करती लाजवाब रचना
    वाह!!!!

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  8. भूमि पुत्र को आज खेतों में होना चाहिए था पर पता नहीं कौन सी विवशता उसे सड़कों पर ले आयी है, भावपूर्ण रचना !

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    Replies
    1. किसान की विवशता तो स्पष्ट है। सरकार की गलत नीतियों की वजह से ही आज उसे सड़क पर उतरना पड़ा है।

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  9. कृषकों के प्रति अत्यंत सशक्त रचना
    साधुवाद 💐

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  10. भूमि-पुत्र के सदा के यथार्थ एवं आज की व्यथा, दोनों को ही हृदयस्पर्शी ढंग से रूपायित कर दिया है यशवंत जी आपने ।

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  11. मेरे ब्लॉग ग़ज़लयात्रा पर आपका स्वागत है। इसमें आप भी शामिल हैं-

    http://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post.html?m=1
    किसान | अन्नदाता | ग़ज़ल | शायरी
    ग़ज़लों के आईने में किसान
    सादर,
    - डॉ. वर्षा सिंह

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