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22 April 2021

वक़्त के कत्लखाने में-22

हो रहा है 
वही सब कुछ अनचाहा 
जो न होता 
तो यूँ पसरा न होता 
दिन और रात के चरम पर 
दहशत और तनाव का 
बेइंतिहा सन्नाटा 
लेकिन हम! 
हम बातों 
और वादाखिलाफी के शूरवीर लोग 
वर्तमान का 
सब सच जानते हुए भी 
तटस्थता का कफन ओढ़ कर 
समय से पहले ही 
लटकाए हुए हैं 
भविष्य की कब्र में अपने पैर ..
सिर्फ इसलिए 
कि 
वक़्त के कत्लखाने में 
प्रतिप्रश्नों की 
कोई जगह नहीं। 

-यशवन्त माथुर©
22042021

9 comments:

  1. वक़्त के क़त्लखाने में जिबह होती ज़िंदगी की रिरियाहट अब बेअसर सी हो रही,अपने अपने दर्द में डूबे लोग पत्थर में तबदील हो जायेंगे एकदिन।
    ------
    समसामयिकी बेहतरीन ,बेहद मुखर रचना।
    सादर।

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. आपकी इस अभिव्यक्ति के शब्द-शब्द में भरे यथार्थ को अनुभव कर रहा हूँ आदरणीय यशवंत जी।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-०४-२०२१) को 'मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे'(चर्चा अंक- ४०४६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. वक्त के आगे किसकी चली है, दहशत और तनाव का यह सन्नाटा भी वक्त का सैलाब ही एक दिन बहाकर ले ही जायेगा, प्रभावशाली लेखन

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  6. बहुत सुंदर रचना

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  7. गज़ब! सीधे हृदय तक उतरता सत्य।
    सुंदर सृजन।

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  8. अति मार्मिक एवं सटीक..

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  9. बहुत सुंदर

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