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30 June 2022

बरसात

(सुनने के लिए कृपया पधारें: https://youtu.be/p9QVmeMM4ek)

बरसात!
अब नहीं रही 
पहले जैसी 
बचपन जैसी 
अल्हड़- 
बेबाक- 
खुशगवार  
देहरी पर 
जिसका 
पहला कदम पड़ते ही 
तन के साथ 
मन भी झूम उठता था 
बादलों की गरज 
और रिमझिम के साथ 
कहा और लिखा जाने वाला 
एक-एक शब्द 
नई परवाज़ के साथ 
रचा करता था 
इतिहास के 
नए पन्ने। 

बरसात!
अब नहीं लाती  
खुशियां 
लाती है तो सिर्फ 
गंदी-बदबूदार नफरत 
जिसे बहने का रास्ता 
अगर मिल जाता 
तो मंजिल तक 
जाने वाला रास्ता 
नहीं होता 
ऊबड़-खाबड़ 
और गड्ढे दार। 


-यशवन्त माथुर©

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-07-2022) को चर्चा मंच     "उतर गया है ताज"    (चर्चा अंक-4478)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  2. चर्चा के लिए मैटर सलेक्ट होने में कठिनाई आती है।
    आप स्वयं भी चर्चाकार रहे हैं।
    कृपया ध्यान दें आदरणीय।

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    Replies
    1. अब दिक्कत नहीं आएगी सर! चर्चा में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

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  3. बरसात तो अब भी पहले की सी है हमारे मनों का उत्साह ही कहीं खो गया सा लगता है

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  4. सही कहा दूषित पर्यावरण में बारिश की बूदें भी दूषित हो रही हैं और बहुत बारिश हो जाने पर साफ हो जाती हैं तो सड़कों पर जल जमाव और गन्दगी बदबूदार होती ही है...
    बहुत सटीक एवं सार्थक सृजन।

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  5. सही कहा आपने बरसात अब पहले जैसी नहीं रही।
    उमंग का यों ओझल होना, जीवन ठगा सा लगता है। अब तो समझ के वृक्ष फल फूल रहें हैं।
    बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  6. सुंदर सृजन!
    बरसात का आना एक एहसास है जो परिस्थितियों के हिसाब से हमें प्रभावित करती है। हाँ आज की प्रदूषित बेला में मिट्टी की सौंधी सौगात से ज्यादा बदबू कीचड़ का श्राप बन जाती है।
    सुंदर।

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