लगता है
सड़क
सड़क नहीं, नदी है!
जिस पर चलने वाले वाहन,
पानी का सैलाब हैं।
कहीं किसी किनारे खड़े
हम जैसे लोगों को भी
इन लहरों का हिस्सा बन कर
चाहे अनचाहे
मिल ही जाना होता है जीवन चक्र में;
हमेशा से हमेशा ही।
-यशवन्त माथुर©
14072022
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१८-०७ -२०२२ ) को 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसड़क की नदी से तुलना!
ReplyDeleteअच्छा है!--ब्रजेन्द्र नाथ
कहीं किसी किनारे खड़े
ReplyDeleteहम जैसे लोगों को भी
इन लहरों का हिस्सा बन कर
चाहे अनचाहे
मिल ही जाना होता है जीवन चक्र में;
अप्रतिम सृजन।
उम्दा ।
ReplyDeleteआपकी इस बात को मैंने आपके यूट्यूब चैनल पर भी देखा और सुना यशवंत जी। ठीक ही कहा है आपने। ज़िन्दगी की सच्चाई तो यही है।
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