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13 December 2011

मकान

बन रहा है
एक मकान
मेरे घर के सामने
ईंट ईंट जोड़कर
दो नहीं
तीन मंज़िला
सुंदर सा मकान
जिसके तीखे नयन नक्श  पर
फिदा हो जाए 
देखते ही कोई भी
मगर मौका नहीं किसी को
कि भीतर झांक भी ले
सूरज की किरणें हों
या चाँद की चाँदनी
कंक्रीट की छत
कर रही है
हर ओर पहरेदारी
मुख्य द्वार से
भीतर तक

मुझे पता है
आने वाले हैं
कुछ दिन में
ए सी
करने वाले हैं
स्थायी गठबंधन
दीवारों से
मंद मंद हवा  के साथ
रूम फ्रेशनर की
भीनी भीनी खुशबू
भीतर से बाहर तक महकेगी
क्योंकि
घर के बाहर लगा
हरसिंगार का पेड़
हो गया है
अतीत की बात

आज उस मकान पर
टंग  गया है
काला सा डरावना मुखौटा
ठीक वैसे ही
जैसे शिशु के माथे पर
काला काजल
लगाया जाता है
मेरे जैसी
बुरी नज़रों से बचने को !


(कल्पना पर आधारित )

38 comments:

  1. काला काजल
    लगाया जाता है
    मेरे जैसी
    बुरी नज़रों से बचने को !
    ......वाह बहुत सही कहा आपने यशवन्त जी

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  2. ' क्योंकि
    घर के बाहर लगा
    हारसिंगार का पेड़
    हो गया है
    अतीत की बात '
    सत्य कहा..!

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  3. आज कल के मकानों से खुला आसमां भी नहीं दिखता ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  4. waah kya baat hai.. bahut khoob ... :)

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  5. baap re baap... aisi kalpna... aur khud ki hi kalpana mei khud ki nazar itni paiani...
    gazab...

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  6. सीधी सच्ची बात बधाई यशवंत

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  7. मगर मौका नहीं किसी को
    कि भीतर झांक भी ले
    सूरज की किरणें हों
    या चाँद की चाँदनी
    कंक्रीट की छत
    कर रही है
    हर ओर पहरेदारी
    मुख्य द्वार से
    भीतर तक
    Bahut Khoob :)

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....

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  9. bahut sundar rachna naye ghar ki aadhunik tasveer dikha di.

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  10. गजब की प्रस्तुति

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  11. भावमय करते शब्‍दों का संगम...

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  12. excellent...बहुत बहुत बढ़िया रचना...
    पढ़ कर दिल खुश हो गया...खास तौर पर आखरी पंक्ति....

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  13. बिलकुल सही कह रही है रचना अब न तो आसमान ही दिखता है और न ही रह गए हैं हरसिंगार... सच्ची कल्पना

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  14. सुन्दर और सत्य ..

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  15. बहुत कुछ कहती रचना ...सुंदर

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  16. घर के बाहर लगा ,हरसिंगार का पेड़ ,
    हो गया है ,अतीत की बात.... !
    कंक्रीट के शहर की सच्चाई झलकाती अच्छी रचना.... !
    लेकिन मेरे अपार्टमेन्ट के सामने हरसिंगार का पेड़ लगा है....:)

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  17. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  18. अब मकान ही बनते प्यारे, घर अब कहाँ बना करता है ?
    पहन मुखौटे, गिरता इंसां,धन-बल लिए तना करता है.

    सुंदर रचना....

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  19. (कल्पना पर आधारित )
    कल्पना जरुर है ...पर ये ही आज का सच हैं .....

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  20. Great creation...waah badhai Yash.

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  21. ' क्योंकि
    घर के बाहर लगा
    हारसिंगार का पेड़
    हो गया है
    अतीत की बात '
    बहुत खूब ।

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  22. धेरे धीरे सब कुछ खत्म होता जा रहा है .... पता नहीं आने वाला समय क्या गुल खिलाने वाला है ..

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  23. रूम फ्रेशनर की
    भीनी भीनी खुशबू
    भीतर से बाहर तक महकेगी
    क्योंकि
    घर के बाहर लगा
    हरसिंगार का पेड़
    हो गया है
    अतीत की बात very nice.

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  24. अच्छी लगी रचना.. ....

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  25. यह कविता कल्पनाओं के सशक्त शब्दांकन का एक अप्रतिम उदाहरण है।

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  26. मयंक अवस्थी जी का मेल पर प्राप्त कमेन्ट ---

    आपकी कविता पर यह कमेण्ट तकनीकी कारणों से पोस्ट नहीं हो सका --फिर प्रयास करूँगा --मयंक
    महो-अंजुम को तूने कर दिया बेदख़्ल ऐ सूरज !!
    ये दुनिया मुफलिसों की थी तेरी जागीर होने तक
    यांत्रिकी और अहमान्यता ने जीवन मूल्यों के साथ -साथ सौन्दर्य भी खा लिया है --कंक्रीट -हरसिंगार -स्थायी गठबन्धन और डरावना मुखौटा -सभी शब्द चित्र में भरपूर रंग भर रहे हैं --बधाई !!

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  27. कल्पना और यतार्थ एक जैसे ही हो गए है.....एक शेर अर्ज़ है -

    पहले रहते थे मकान में लोग
    अब लोगो के ज़ेहन में मकान रहते हैं

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  28. सब कुछ बदलता जा रहा है...बहुत सुंदर प्रस्तुति..

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  29. आज की मानसिकता को दर्शाती सुन्दर व सटीक रचना।

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  30. सूरज की किरणें हों
    या चाँद की चाँदनी
    कंक्रीट की छत
    कर रही है
    हर ओर पहरेदारी .....

    सार्थक रचना....
    सादर...

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  31. बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति ...!
    आभार !

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  32. bhaut hi behtreen rachna.... sir...

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  33. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ।

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  34. सारगर्भित काव्य है निसंदेह आप बधाई के अधिकारी हैं| Happy birth day 2 u.

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