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11 August 2012

त्रस्त है.....अभ्यस्त है

इन्हें शब्दों के बिखरे टुकड़े कहना सही रहेगा । अलग अलग समय पर अलग अलग मूड मे लिखे कुछ शब्दों को एक करने की कोशिश कर के यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ--

जनता त्रस्त है,पार्षद मस्त है
मेयर व्यस्त है,विधायक भ्रष्ट है
सांसद को कष्ट है ,मौसम भी पस्त है

कहीं गरज है, छींटे हैं ,बौछारें हैं
कहीं सूखा है,बाढ़ है ,कातिल फुहारें हैं

दरवाजों के बाहर , कहीं जूठन फिक रही है
कहीं कुलबुलाती आँतें,और आँखें सिसक रही हैं

कहीं सड़ता गेहूं -चावल, बह कर के बारिश में
फिर भी 'वो' समझते हैं,फैले हाथ मोबाइल की फरमाइश मे

अब क्या कहें कि गहराते अँधेरों में
सच का उजाला तो गहरी नींद में हसीन सपना है
सोच रहा हूँ परायों की रंगीन बस्ती में
किस मुखौटे के पीछे कौन सा चेहरा अपना है 

है यही सच कि कोई माने या न माने -
पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है
मस्त है खुद में 'आम',त्रस्त है ,अभ्यस्त है

©यशवन्त माथुर©

28 comments:

  1. यूँ ही सोच के अधीन अस्त-पस्त रहे आप :)))

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  2. सच कहा...त्रस्त है...अभ्यस्त है...
    बहुत सुन्दर यशवंत....
    सस्नेह

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  3. वाह बहुत जबरदस्त कटाक्ष शब्द शब्द जोड़ कर सुन्दर ईमारत कड़ी की आपने बहुत बधाई

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  5. आज मन प्रसन्न और दिल बाग़-बाग़ हो गया .... :)
    शब्द जोड़-जोड़ कर बुलंद किला तैयार हुआ है .... !!

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  6. सही कहा ..पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है..लेकिन रचना मस्त मस्त है ..यशवन्त.शुभकामनाएं

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  7. विस्तृत विचारों को खूब्सूर्र्ती से पिरोया लिखते रहो अच्छा अच्छा .

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  8. अलग-अलग मूड में ही आपने तो क्या करारा कटाक्ष
    बना दिया है सर जी..
    शानदार...
    :-)

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  9. aapke vichaar teekhe, durust aur mast hai...

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  10. मन की स्वाभाविक अभ्व्यक्ति अपने उद्श्य में सफल है ...बहुत सुन्दर ..

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  11. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कही गई सच्ची बातें कहें या कटाक्ष

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  12. सटीक लिखा है आपने .बधाई

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  13. bilkul sahi kaha aapne Yashwant bhai.. ye sthiti dekhkar bahut hi dukh hota hai.. kya karen ki parivartan ho paaye.. ye bhi nahi soojhta...

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  14. है यही सच कि कोई माने या न माने -
    पस्त है कष्ट, और भ्रष्ट व्यस्त है
    मस्त है खुद में 'आम',त्रस्त है ,अभ्यस्त है..shat prtishat sacchi baat.....

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  15. यही तो देश का कष्ट है
    कि सारे नेता भ्रष्ट है
    राजनीती तो अब नष्ट है
    तब भी नेता स्वस्थ्य है
    वे घोटालो के अभ्यस्त है
    और आम जनता त्रस्त है
    सारे मौका परस्त है
    सब अपने में मस्त है
    वतन कि हालत पस्त है
    खुशहाली अस्त-व्यस्त है
    यही तो देश का कष्ट है
    कि अब सब ध्रतराष्ट्र है
    - मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

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  16. Bilkul sahi kaha yashwant ji :)

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  17. अब क्या कहें कि गहराते अँधेरों में
    सच का उजाला तो गहरी नींद में हसीन सपना है
    सोच रहा हूँ परायों की रंगीन बस्ती में
    किस मुखौटे के पीछे कौन सा चेहरा अपना है

    ...लाज़वाब ! सच का आईना दिखाती बहुत सटीक प्रस्तुति..

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  18. पूरे सिस्टम की तस्वीर आपने बना दी है. अनाज सड़ने दिया जाता है. मोबाइल दिया जाता है. किस कंपनी का मोबाइल दिया जाएगा? अब यही देखने वाली बात होगी कि घोटाला कितने का होगा.

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  19. शब्दों का खुबसूरत संयोजन ...

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  20. गेहूं सड़ते रहे गोदामों में , हाथो में मोबाइल ...
    वे मस्त रहे , जनता त्रस्त रहे !
    सभी क्षणिकाएं लाजवाब है !

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  21. वाह ... बेहतरीन

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  22. waah, uttam bhaav liye rachna, bilkul sahi kataksh.

    shubhkamnayen

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