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15 January 2014

कहीं ज़्यादा गर्मी,कहीं ज़्यादा ठंड है

(चित्र-हिंदुस्तान-लखनऊ-पेज-14)

कहीं ज़्यादा गर्मी,कहीं ज़्यादा ठंड है
यह प्रकृति से खेलने का ही दंड है

भूकंपों से कभी समझाती है हमें
तूफानों से कभी दहलाती है हमें

हरियाली क्यों हमें सुहाती नहीं
कंक्रीट उसको कभी लुभाती नहीं

उजड़ते गांवों का यह शहरीकरण है 
कहीं ज़्यादा गर्मी,कहीं ज़्यादा ठंड है । 
 
~यशवन्त यश©

11 comments:

  1. यही तो प्रक्रती से खेलने का दंड है अच्छी कविता बधाई

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  2. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. सच कहा....
    और उतनी ही बेहतरीन अभिव्यक्ति....!!!

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  4. सच है ..... हम भी प्रकृति से खेल रहे हैं

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  5. बिलकुल अलग दृष्टि डाली है आपने. सुन्दर रचना.

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  6. सुंदर रचना ...!!!

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  7. ी गर्मी कही ठंड है यही प्रकॄति का ढंड है

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  8. I like the music on your blog ,really beautiful !!

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  9. और कम्बख्त यहाँ -३० डिग्री का प्रकोप झेल रहे हैं हम! :( ;)

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