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14 July 2014

विचार

हम सभी
उलझे रहते हैं रोज़
कितने ही विचारों के जाल में
जिनकी
उलझन को सुलझा कर
कभी हो जाते हैं मुक्त
और कभी
फँसे रहते हैं
लंबे समय तक
जूझते रहते हैं
खुद से
कभी किसी और से ....

विचार
अपने तीखेपन से
कभी चुभते हैं
तीर की तरह
और कभी
करा देते हैं एहसास
शक्कर की मिठास का ....

सबके अपने अपने विचार
कभी एक से लगते हैं
कभी साधारण से लगते हैं
कभी असाधारण हो कर
छाए रहते हैं
कहीं भीतर तक ....

इन विचारों को
कहने का
लिखने का
दिखने और दिखाने का
सबका अपना तरीका है
जिसमे
कभी
होता है आकर्षण
और कभी विरक्ति
फिर भी हम सभी
मुक्त नहीं हो सकते
विचारों के
सार्वभौम अस्तित्व से।

~यशवन्त यश©

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 15 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  3. bahut achha likha hai, sochpoorna abhivyakti

    Shubhkamnayein

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  4. Bilkul steek abhivyati....

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