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21 November 2020

काश बदल सकता ....

काश!
कि मैं बदल सकता 
ले जा सकता 
समय को वहीं 
उसी जगह 
जहाँ से 
शुरू हुआ था 
ये सफर 
लेकिन 
अपनी द्रुत गति से 
समय के इस चलते जाने में 
थोड़ी भी 
नहीं होती गुंजाइश 
इस जीवन के 
बीते पलों में 
वापस लौटने की 
मगर हाँ 
सिर्फ चिरनिद्रा ही 
होता है 
अंतिम विकल्प 
जिसकी प्रतीक्षा में 
कभी कभी लगने लगता है 
एक एक सूक्ष्म पल 
कई -कई जन्मों जैसा। 

-यशवन्त माथुर ©
22112020 

10 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. समय को पीछे लौटाले जाना सम्भव नहीं किन्तु समय को वर्तमान में ठहरा लेना संभव है, उस एक पल में जहाँ न कोई अतीत है न भविष्य, पर फिर भी ऐसा कुछ है जो मन को थामता है, चिरनिद्रा तो एक शब्द भर है, इधर आँख मूंदते ही एक नया सफर आरंभ हो जाता है ऐसा भी कहते है कुछ सयाने ...

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  5. आपकी बात दिल को छू गई यशवंत जी ।

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  6. आध्यात्मिक सा गहन लेखन।
    सुंदर सार्थक।

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  7. आप सभी सुधी जनों का हार्दिक धन्यवाद!

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