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30 December 2020

मैं नहीं कवि.....

मैं नहीं कवि 
न ही कविता को ही कह पाता हूँ 
बस जो भी मन में आता है 
वो ही लिखता जाता हूँ। 

है नहीं भान न ही ज्ञान 
रस छंद अलंकारों का
परिचय बस थोड़ा ही है 
काव्य के प्रकारों का। 

बस थोड़ा जो कुछ सहेजा समेटा 
और जो कुछ है देखा समझा
शब्दों की डोर में वो ही
थोड़ा पिरोता जाता हूँ । 

मैं नहीं कवि 
न ही कविता को ही कह पाता हूँ 
मन की कोर से जो निकलती
वो बात बताता जाता हूँ ।

-यशवन्त माथुर ©
23122020

10 comments:

  1. मन के भाव स्वतः ही रस छंद अलंकरों से अलंकृत होते हैं जो इन्हें पिरोना जानता है वही तो कवि है...
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  2. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. और जो मन से निकलकर शब्दों में उतर जाए, वही सार्थक सृजन है । बहुत अच्छी कविता है यह आपकी यशवन्त जी ।

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  5. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय
    आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. मनोभावों को उद्घृत करती सुंदर और सार्थक रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..।

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  7. कविता जो दिल से उमगती है वही तो और दिलों को आलोड़ित करती है !

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  8. बहुत सहजभाव से कह दी है आपने अपनी रचना।
    मनोभावों का सुन्दर चित्रण।

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  9. मैं नहीं कवि..
    कविता का नहीं सृजक..
    माध्यम केवल बातों का..
    आपकी बातें ..बातें आपके मन की..
    मेरी लेखनी माध्यम मात्र..अनंत मन के परिचय की..

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