वो
जो निर्दयी समाज के ताने-बाने में
बुरी तरह फँसकर
पंचायतों के चक्रव्यूहों में उलझ कर
बलि चढ़ जाता है
खोखले उसूलों की
तलवारों से कट कर.... ?
या वो
जिसे तमाम अग्नि परीक्षाओं से
गुज़ारकर भी
ठुकरा दिया जाता है
एकतरफा करार दे कर
मजबूर किया जाता है
एकाकी हो जाने को....?
या फिर वो
जिसे 'खास' चश्मे से देखकर
हम सब उतार देते हैं
अपनी गोरी-काली
और मोटी-पतली नज़रों से... ?
प्रश्न
यूं तो बहुत से हैं
लेकिन सार सबका सिर्फ यही
कि आखिर क्या होता है प्रेम....?
08022021
वाकई कविता में उठाया गया प्रश्न सदियों से अनुत्तरित है, जो उत्तर जानने की जिज्ञासा में अनेक बार भटका है। कृष्ण और मीरा के प्रेम जैसा पावन प्रेम बिरले ही मिल पाता है। इस अच्छी कविता के लिए बधाई 🙏
ReplyDeleteकृपया यहां भी पधारें... दस दोहे वसंत पर
सादर धन्यवाद🙏
Deleteअनजाना सा आकर्षण है प्रेम जिसमें हुआ जा सकता है पर समझा नहीं जा सकता है । अति सुन्दर कथ्य ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद🙏
Deleteप्रश्न उठाती और प्रश्न छोड़ कर जाती हुई आपकी रचना बेहतरीन है..
ReplyDeleteसादर प्रणाम
सादर धन्यवाद🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद🙏
Deleteप्रणय दिवस के अवसर पर सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteआज के प्रेम परिदृष्य पर गूढ़ प्रश्न उठाती समसामयिक यथार्थ पूर्ण रचना..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteगहरे प्रश्न उठाती रचना.. वास्तविक प्रेम को कोई बिरला ही जान पाता है
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteसवाल बहुत हैं यशवंत जी । लेकिन जवाब प्यार करने वालों को ही ढूंढ़ने होंगे क्योंकि दर्द भी वही झेलते हैं और ज़ुल्म भी वही । उन्हीं पर बीतती है, इसलिए अपना हाले दिल वे ही बेहतर जानते हैं । दूसरे उसे क्या जानें, क्यों जानें ? बाकी प्रेम क्या है, यह या तो प्रेम करने से लगता है या किसी का प्रेम पाने से । बहुत अच्छी और सही अभिव्यक्ति है आपकी ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteप्रश्न
ReplyDeleteयूं तो बहुत से हैं
लेकिन सार सबका सिर्फ यही
कि आखिर क्या होता है प्रेम....?
बहुत सटीक सवाल। जिसका जबाब देना आसान नही है। क्योंकि वो महसूस करने की बात है।
सादर धन्यवाद!
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