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12 June 2013

उत्पाती बंदर

डाल डाल पर कूदता बंदर
हँसाता  कभी डराता बंदर
सबको करता घर के अंदर
जब तक बाहर रहता बंदर

नोंच नोंच कर पेड़ों से
कच्चे पके फल खाता बंदर
या घास के हरे लॉन को
बेदर्दी से उजाड़ता बंदर 

अरे बाप रे कैसा मंज़र
हाथ से छीन कर खाता बंदर
डंडे गुलेल की फटकारों से
बड़ी मुश्किल से भागता बंदर

मैं भी था ऐसा ही बंदर 
बचपन में उत्पाती था
मम्मी आती लेकर डंडा
ऊंचाई पर चड़ जाता था

अब तो शायद ही दिखता बंदर
जाने कहाँ पे छुप गया बंदर
मेरा भी बचपन बीत गया 
शरारतें  गयीं अब खोल के अंदर :)

~यशवन्त माथुर©

8 comments:

  1. अब भी जहां दिखता बंदर
    वही मंज़र मचाता बंदर
    बच्चे वैसे ही अच्छे लगते
    धूम मचाते जैसे बंदर
    हार्दिक शुभकामनायें ...

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  2. अब तो शायद ही दिखता बंदर
    जाने कहाँ पे छुप गया बंदर
    मेरा भी बचपन बीत गया
    शरारतें गयीं अब खोल के अंदर

    बचपन में जीता हमारा अंतर्मन

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  3. .रोचक प्रस्तुति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  4. बहुत अच्छी रचना

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  5. आखिर वो तो हमारे पूर्वज ही ठहरे. सुन्दर रचना यशवंत भाई.

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  6. यहाँ अभी भी आता बन्दर
    सबको लेकर आता बन्दर
    कभी गाय की पीठ पे चढ़ता
    कुत्तों को कभी सताता बन्दर
    कभी-कभी किचेन में घुसकर
    पूरण पूरी ले जाता बन्दर... :)
    सुन्दर रचना... शुभकामनायें

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  7. बहुत सुन्दर ! बचपन में तो हम सभी बन्दर की तरह ही उत्पात मचाते है !

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