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01 September 2013

किसे चुनूँ किस पर लिखूँ ?

नज़रों के सामने
फैले हुए हैं
ढेर सारे विषय
कुछ आकार में बड़े
कुछ बहुत ही छोटे
कुछ समुंदर की
अंतहीन गहराई लिये
पहाड़ों की ऊंचाई लिये 
कुछ
थोड़ा ही कुरेदने पर
मुट्ठी के भीतर 
समा जाते हैं
कुछ
पल मे ही
उफनाने लगते हैं 
सबके अपने शब्द हैं
अपनी भाषा है
अपना अलग व्याकरण है
और इन सबके सामने
कभी चौंकता
कभी ठिठकता
भ्रम में पड़ता
सोच में डूबा
निरीह सा 'मैं'
उलझा हूँ
किसे चुनूँ
किस पर लिखूँ ?
:)
  ~यशवन्त यश ©

11 comments:

  1. सच मे बड़ी डांवाडोल सी मानसिक स्थिति हो जाति है लिखने से पहले ....

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  2. very nice to say but very difficukt to balance

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  3. शुभ संध्या
    उलझन बड़ी चीज है
    कुत्ती सी
    जरा सा दुलारा
    बस हो गया वो प्यारा
    नहीं छोड़ती
    पीछा वो नामुराद
    उलझन...
    सच में भाई
    इशारों इशारों में
    सब सुलझा दिया
    बहरहाल...बधाइयां
    नये तखल्लुस 'यश' अपनाने के लिये

    सादर

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  4. भ्रम में पड़ता
    सोच में डूबा
    निरीह सा 'मैं'
    उलझा हूँ
    किसे चुनूँ
    किस पर लिखूँ ?
    bhavpoorn

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  5. चुनाव करते समय यही द्विधा रहती है !

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  6. आपकी लेखनी यूं ही उम्दा चलती रहे
    तथास्तु

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  7. जो आपका मन कहे उसी पर लिखें..

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  8. बहुत सुन्दर लिखा है।

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  9. ये भ्रह्म यूं ही रहता है .. लेखनी फिर भी चलती है ... अपना काम करती है ...

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  10. ये द्वंद्व सबके लिए है.....

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