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24 April 2020

नहीं चलना धारा के साथ

हाँ माना
कि बहती धारा
सबको भाती  है
वह ले चलती है
अपने भीतर
कई सुनहरे पल
अपनी यात्रा में
सबके साथ
उसकी मंजिल
भले ही
आसान
और पास होती जाती है
लेकिन खोती जाती है
अपनी पहचान
हर अगले पड़ाव पर।

मेरे अंदर की महत्त्वाकांक्षा
मुझे रोक देती है
बहने से
अपना मूल
अपना अस्तित्व
जल्द ही खोने से
शायद मेरा वर्तमान
या भविष्य
यहीं थाम देना चाहता है
मन के भीतर उमड़ती
अजीब सी हलचल को
वजह जो भी हो
मुझे पसंद है
मेरे  'मैं' का हाथ
इसलिए न चला  हूँ
न ही चलूँगा
धारा के साथ ।

-यशवन्त माथुर ©
24/04/2020

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