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01 April 2020

वक्त के कतलखाने में -18

एक अजीब सी बेबसी
जब दिखती है
कुछ लोगों के चेहरों पर
तो ऐसा लगता है
जैसे
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं होने का एहसास
भीतर से खोखला करता हुआ
काँटों भरे रास्तों पर चलता हुआ
अपने तीखेपन से
याद दिलाता है
जीवन के प्रेक्षागृह में
लगा हुआ
वही पुराना चलचित्र
जिसके घिसे हुए दृश्य
ले जाते हैं अपने साथ
धूल भरे उन्हीं गलियारों में
जो कभी
हुआ करते थे आबाद
वक्त के कतलखाने में।

-यशवन्त माथुर ©
01/04/2020

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