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21 April 2020

कुछ लोग-49

अच्छे-बुरे
कई तरह के लोग
बात-बेबात
बताने लगते हैं
समझाने लगते हैं-
ये लिखो
वो न लिखो
ऐसे लिखो
वैसे न लिखो
ये चित्र या ये पंक्ति
साझा करो
या न करो
लेकिन खुद
अपने चेहरे की
कुटिल मुस्कुराहट के
पीछे रखते हैं
अपना वो सच
जो
कहलवाना चाहते हैं मुझसे
लेकिन नाकाम रहते हैं
क्योंकि
यह जो कुछ है
मेरा है
यह मेरी अभिव्यक्ति है
जो खराब और अच्छी होती है
लेकिन करीब होती है
मेरे दिल और दिमाग के
इसलिए
अब पाता हूँ
खुद को उस मुकाम पर
जब बे लगाम
कह सकता हूँ
ढाल सकता हूँ
अपने शब्दों को
अपने मन के
इस धरातल पर।

-यशवन्त माथुर ©
21/04/2020

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