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21 February 2021

धर्म


'धारयति इति धर्मः'- 
जिसे धारण किया जाए 
वही धर्म है 
अच्छे कर्म करना ही 
जीवन का मर्म है 
लेकिन; 
ये शब्द 
और उनके वास्तविक अर्थ 
सदियों पहले 
खुद ही कहने के बाद 
अब हम भूलते जा रहे हैं 
भटकते जा रहे हैं, 
कई टुकड़ों में 
बँटते जा रहे हैं 
शायद इसलिए 
कि परस्पर विश्वास की 
मजबूत जड़ें 
पल-पल बहाए जा रहे 
झूठ के मट्ठे को सोख कर 
जर्जर करती जा रही हैं 
सृष्टि के आरंभ से 
गगन चूमते 
हरे-भरे पेड़ को 
जिसमें पतझड़ आ तो गया है 
लेकिन 
पुनर्जीवन तभी होगा संभव 
जब प्रेम के जल में 
सच का कीटनाशक मिला कर 
हम शुरू कर देंगे सींचना 
अपने वर्तमान से 
भविष्य को। 

-यशवन्त माथुर ©
21022021

32 comments:

  1. अति सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति ।

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  2. जो धारण किया जा सके वही धर्म है।
    बेहतरीन प्रस्तुति।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-2-21) को 'धारयति इति धर्मः'- (चर्चा अंक- 3986) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. सुन्दर प्रस्तुति.

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  5. बहुत खूब, बहुत खूब यशवंत जी ।

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  6. आध्यात्मिक मूल्यों को समक्ष रखता आपका सृजन श्लाघनीय है।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  8. सार्थक लेखन ! झूठ कितना भी बड़ा क्यों न हो वह अनंत तो हो नहीं सकता, सत्य अनंत है और रहेगा

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  9. चिंतन परक सृजन ।
    सार्थक भाव समेटे सटीक सृजन।
    बहुत सुंदर।

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  10. सुंदर सृजन ।
    प्रेरणादायक।

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  11. सुंदर प्रस्तुति।

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  12. अध्यात्म को छूता हुआ दर्शन ..बहुत खूब

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  13. आज के परिवेश में जीवन मूल्यों का अवलोकन करता स्वस्थ चिंतन..

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