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28 November 2010

खिल उठें ये कलियाँ

(1)


रोज़ सुबह
मैं देखता हूँ
इन अनखिली कलियों को
पीठ पर
आशाओं का बोझा लादे
चलती जाती हैं
जो
एक फूल बनने का
अनोखा
सपना लेकर

(2)


मैं भी चाहता हूँ
जल्दी से
ये कलियाँ खिल उठें
और मैं
महसूस कर सकूं
नए फूलों की
ताज़ी खुशबू को

उस खुशबू को
जो हर दिशा में फ़ैल कर
करवा दे
अपने होने का
एहसास

ताकि फिर खिल सकें
कुछ और
नयी कलियाँ.






(Photos:Google Image Search)                     (मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

19 comments:

  1. सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति

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  2. उस खुशबू को
    जो हर दिशा में फ़ैल कर
    करवा दे
    अपने होने का
    एहसास

    ताकि फिर खिल सकें
    कुछ और
    नयी कलियाँ.

    दिल को वाकई छू गईं...बहुत खूब यशवंत जी...आशाओं की कलियां, आशाओं का सवेरा....आशा ही आशा..

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  3. ताकि फिर खिल सकें
    कुछ और
    नयी कलियाँ.


    आपकी सोच ने मंत्रमुग्ध कर दिया..... बेहद खूबसूरत विचार है. जल्द ही खिले ये प्यारी-प्यारी कलियाँ बगियन में खिलखिलाने को जगमगाने को......

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना...

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  6. कल...आज और आने वाले कल के सपने संजोये, कली से फूल बनने के एहसास संजोये सुन्दर रचना!

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  7. हमारे देश की लड़कियां ही एकदिन देश का नाम उज्जवल करेगी ..
    सुन्दर रचना ...

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  8. कितनी सीधी सच्ची खरी और सकारात्मक बातें

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  9. हृदय स्पर्शी रचना।

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  10. सुन्दर और सार्थक रचना....

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  11. ... bahut sundar ... khoobsoorat rachanaa ... badhaai !!!

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  12. bahut sundar..saarthak rachnatmak lekhan..

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  13. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
    को दिया गया है .
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

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  14. हृदय स्पर्शी रचना।
    बहुत पसन्द आया
    बहुत देर से पहुँच पाया .........माफी चाहता हूँ..

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  15. .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  16. आदरणीया संगीता जी,वीना जी,वंदना जी,पूजा जी,वंदना गुप्ता जी,अनुपमा जी,इन्द्रनील जी,रचना जी,मनोज जी,मोनिका जी,उदय जी,अरविन्द जी एवं संजय जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए.

    आदरणीया संगीता जी एवं वंदना जी--चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिए आप का विशेष आभार.

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  17. वाह यशवंत जी...दोनों कवितायें बेहद बेहद खूबसूरत हैं :)
    पहली वाली खास पसंद आई :)

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  18. ​बहुत अच्छा यशवंत। रचना के सुर अच्छे हैं, भाव गहरे हैं। जारी रखो। भावुक व्यक्ति ही जीवन का रस पीता है। सादगी पसंद ही इस देश के मणिमुकुट बनेंगे। ग्लानि मत करो, अच्छी मंजिल तुम्हारा इंतजार कर रही है। साथ बने रहो, लिखते चलो।

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