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20 May 2012

पत्थर का साथ

चित्र साभार- http://hardinutsav.blogspot.in
इंसान की फितरत से
पत्थर का साथ अच्छा है .....
सिर्फ देखता है एक टक ,
सुनता है -समझता है....
न छल है उसमे कोई
न कोई तमन्ना है ...
लहरों से टकराना है..
टूटना है बिखरना है ....
फिर अंजाम की क्या फिकर...
कि इंसान भी टूटकर
बिखरता है एक दिन .....
एक जज़्बात से टूटता है
दूसरा लहरों मे बिखरता है ।

[ मेरी आदत है कुछ लिंक्स को फेसबुक पर शेयर करने की। स्वप्नगंधा जी की शायरी वाले एक लिंक पर स्वाति वल्लभा जी की एक टिप्पणी के उत्तर मे मैंने (17 मई को) उपरोक्त पंक्तियों को लिखा था।  ]

<<<<<यशवन्त माथुर >>>>

25 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर...आप अपनी आदत मत बदलियेगा...अच्छी आदत है....पत्थर दिल इंसानों से मौनधारी पाषाण ही बेहतर है....

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  2. और हमेशा दूसरों के काम आता है ...चाहे बुत बना के पूज लो ..या फेंकर तोड़ दो .....

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  3. इंसान की फितरत भी इसलिए कभी-कभी पत्थर सा हो जाता है .... !!
    उम्दा अभिव्यक्ति .... !!

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  4. इन्सान भी पत्थर की तरह टूटता है, बिखरता है... सुन्दर रचना

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  5. इंसान की फितरत से
    पत्थर का साथ अच्छा है .....
    हाँ सही कहा आपने पत्थर इंसानों के तरह फितरत नहीं बदलता ..
    बहुत बढ़िया जज्बात ...सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बहुत सुंदर यशवंत....

    सस्नेह.

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  7. ese hi comment karte rahiye... :)

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  8. आभार |
    बढ़िया प्रस्तुति ||

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  9. ये तो सच है ... पत्थर से चोट लगे तो बात समझ में आती है , पैर इंसान के चोगे में इंसान ! हैरानी होती है

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  10. very nice Yashwant ji :)

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  11. bahut acchha likha hai yashwant ji aapne!

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  12. सुन्दर.....बस जज़्बात पत्थर न होने पाएं ।

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  13. बहुत सही यशवन्त......सुन्दर प्रस्तुति

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  14. बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

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  15. bahut hi sundar bhav bhari rachna

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  16. Bahut hi sundar bhav bhari rachna

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  17. बहुत ही सुन्दर विचार

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  18. बहुत बढ़िया प्रस्तुति....
    गहन विचार..

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  19. पत्थर के मन में छुपे भावों को बखूबी पढ़ा है आपने
    विशेष रूप से अन्तिम दो पंक्ति .....मनमोहक
    आभार

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