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17 May 2012

अक्षरों का जीवन .....

चित्र साभार:- http://www.facenfacts.com/
कभी मैं सोचा करता था
लिखे हुए अक्षर
कभी नहीं मिटते
पर आज
जब देखा
गले हुए पन्नों वाली
एक पुरानी किताब को
जगह जगह धुंधली पड़ती
स्याही
दे रही थी गवाही
मैं गलत था

अक्षरों का जीवन भी
इन्सानों जैसा होता है
कुछ समय चलता है
चमकता है
और फिर
फीका हो जाता है

अक्षरों का जीवन
निर्भर है
किताब के आवरण की
चमक के टिकाऊपन पर
कागज और स्याही के
समन्वय पर
वर्तमान और भविष्य पर
और अंततः
लकड़ी की अलमारी के
कोने मे छुपी दीमक
की पहुँच पर

अक्षर मिटते हैं
क्योंकि सृजनकर्ता की
मेहनत पर
पानी फिरना ही होता है
एक दिन !

<<<< यशवन्त माथुर >>>>  
 

34 comments:

  1. आया है सो जायेगा लिखा है तो मिटेगा भी जीवन क्षणभंगुर है ्फिर अक्षर हों या ज़िन्दगी

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  2. बहुत ही सही कहा है आपने ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. आपने सही कहा,,,,,,,यशवंत जी

    अक्षरों का जीवन भी
    इन्सानों जैसा होता है
    कुछ समय चलता है
    चमकता है
    और फिर
    फीका हो जाता है,..

    बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति

    MY RECENT POSTकाव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

    MY RECENT POSTफुहार....: बदनसीबी,.....

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  4. यथार्थ को कहती सुंदर अभिव्यक्ति .... हर चीज़ को एक न एक दिन नष्ट होना ही है ...

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  5. अक्षर मिटते हैं
    क्योंकि सृजनकर्ता की
    मेहनत पर
    पानी फिरना ही होता है
    एक दिन !

    शायद हाँ, शायद नहीं, क्योंकि सृजन कर्ता की मेहनत तब तक सफल हो चुकी होती है किसी पढ़ने वाले की आँखों से गुजर कर..हाँ किताब की एक उम्र जरूर होती है.

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  6. सुन्दर प्रस्तुति...

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  7. अक्षरों का जीवन भी
    इन्सानों जैसा होता है
    कुछ समय चलता है
    चमकता है
    और फिर
    फीका हो जाता है.... वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति...यशवन्त..शुभकामनाएं

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  8. वाह! अक्षरों को हमारे जीवन से जोड़ कर देखने का अच्छा तरीक है..
    सही में.. अक्षर और जीवन एक जैसे से ही हैं.. पहल खूब चमक के साथ सब को लुभाते हैं और फिर फीके पड़ कर गुमनाम हो जाते हैं!

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  9. आमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |

    करे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||

    --

    शुक्रवारीय चर्चा मंच |

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  10. बहुत खूब....
    आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
    http://bulletinofblog.blogspot.in/

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  11. पर आज
    जब देखा
    गले हुए पन्नों वाली
    एक पुरानी किताब को
    जगह जगह धुंधली पड़ती
    स्याही
    दे रही थी गवाही
    मैं गलत था...

    bahut sundar rachna...

    .

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  12. सही कहा है आपने यशवंत जी
    सुन्दर रचना....

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  13. यही सत्य है..चाहे जितना भी संजो लो..

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  14. जो 'है' ,उसे एक दिन तो 'नहीं' होना ही है |

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  15. sahi bat ......par apni chap to chod hi jati hai...

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  16. अक्षर मिटते हैं
    क्योंकि सृजनकर्ता की
    मेहनत पर
    पानी फिरना ही होता है
    एक दिन !
    सत्य अभिव्यक्ति .... !!

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  17. गहन बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!
    किन्तु इस तत्थ्य को स्वीकारने का मन नहीं होता ...मुझे लगता है कुछ तो है जो फिर भी बचा रह जाता है ...!!कहीं न कहीं ...

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  18. akshar sirf kitaabo se mit sakte hain
    dil par jo chap jaate hain alfaaz
    unahe to maut bhi nahi mita paati

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  19. एक यथार्थ को दर्शाती अप्रतिम रचना ...बहुत खूब

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  20. kavita bahut achchi hai..par man par likhe kuch shabd kabhi nhi mitte....

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  21. अच्छी रचना है भाई साहब .

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  22. शब्दों की जो छाप दिल पर पड़ती है वो अमिट है.....हाँ किताब की तो एक उम्र होती है ।

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  23. kya khoob likha hai aapne

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  24. बहुत खूब ...हां अक्षर भी फीके पड़ते हैं ...बढिया

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  25. जीवन की क्षणभंगुरता जतलाती सुन्दर रचना. स्नेह .

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  26. बहुत बढ़िया रचना !
    सादर.....

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  27. जीवन का सच बताती बहुत अच्छी रचना ......... शुभकामनाएं !

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  28. wah yashwant jee...kya kamal kee soch hai..nayapan..tajgi..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

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  29. अक्षर मिटते हैं
    क्योंकि सृजनकर्ता की
    मेहनत पर
    पानी फिरना ही होता है
    एक दिन !
    बहुत ही अर्थपूर्ण व् सटीक अभिव्यक्ति यशवंत जी |

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