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09 December 2012

फर्क नहीं पड़ता

आए कोई न आए इस दर पर
फर्क नहीं पड़ता
नकाब मे चेहरा छुपा कर
कुछ कह जाए
फर्क नहीं पड़ता

शब्दों की इन राहों पर
शब्दों के तीखे मोड़ों पर
शब्दों के भीड़ भरे मेलों में
मिल जाए कोई या बिछड़ जाए
फर्क नहीं पड़ता 

न आने से पहले कहा था कुछ
न जाने से पहले कुछ कहना है
इस लाईलाज नशे मे डूब कर
खुश होना कभी बिखरना है

यह महफिल नहीं रंगों की
न रंग बिरंगे पर्दे हैं
कभी गरम तो सर्द हवा संग
एक मन और उसकी बाते हैं

हम तो चलते चलते हैं
यूं ही कुछ कुछ कहते हैं
कुछ मे कभी कुछ न मिले तो
अर्थ अनर्थ को
फर्क नहीं पड़ता। 

©यशवन्त माथुर©

18 comments:

  1. ई मेल पर प्राप्त-

    superb. Mathurji.
    Madan Mohan saxena

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  2. ई मेल पर प्राप्त-

    indira mukhopadhyay


    बहुत खूब यशवंतजी। पर आप कविता लिखते रहिये हमें फर्क पड़ता है।

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  3. फर्क तो पड़ गया

    आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 12/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  4. धन्यवाद दीदी

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  5. काश ऐसा ही हो कोई कुछ भी कहे या करे हमें फर्क ना पड़े...
    :-)

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  6. धन्यवाद रीना जी

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  7. ई मेल से प्राप्त टिप्पणी

    विभा रानी श्रीवास्तव


    अरे ऐसे कैसे .......... आपने कह दिया हमने मान लिया ......... ??

    मुझे तो बहुत फर्क पड़ता है !

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद आंटी

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  9. फ़र्क पड़ता है यशवंत ....किसी की तकलीफ़ पर प्यार के दो बोलों के मरहमसे फर्क पड़ता है .....और भी ऐसे ग़म हैं ज़माने में ......जिन्हें शब्दों की बैसाखी से फ़र्क पड़ता है ...आज़मा के देखो

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  10. ज़रूर आंटी!
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  11. फर्क नहीं पड़ता तो आज ये लिखा भी नहीं जाता .... सुंदर प्रस्तुति

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    Replies
    1. सच में फर्क नहीं पड़ता आंटी। लिखने की बात तो यह है आंटी कि 6 साल की उम्र से आदत सी पड़ गयी है कुछ न कुछ लिखने की :)

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  12. हाँ यशवंत ..ये तो दिल को बहलाने वाली बात है...फर्क तो पड़ता है...काश के न पड़ता....

    सस्नेह

    अनु

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  13. धन्यवाद दीदी।

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  14. जेवण में बातों का फर्क न पड़े तो जीवन आसान हो जायगा ... पर शायद ऐसा होता नहीं ...

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  15. बहुत बहुत धन्यवाद सर!

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  16. चलना बहुत जरूरी है यशवंत भाई, यभी तो पत्थर और फूल का बोध हो. बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता.

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  17. बहुत बहुत धन्यवाद निहार जी।

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