खामोशी में
घड़ी की
डरावनी टिक टिक
न जाने कैसा
आनंद पाती है
कभी न थमने में।
©यशवन्त माथुर©
घड़ी की
डरावनी टिक टिक
न जाने कैसा
आनंद पाती है
कभी न थमने में।
©यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
बहुत अच्छे बंधू | बढ़िया अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteTamasha-e-zindagi
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ......
ReplyDeleteबहुत पहले मेरे सोने के कमरे में थी ऐसी घड़ी ..........
ReplyDeleteकई बार मन किया होगा ..........
उतारूँ और चुर-चुर कर दूँ .....
शुभकामनायें !!
मेल पर प्राप्त टिप्पणी -
ReplyDeleteindira mukhopadhyay
Very correct expression Yashwantji