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29 January 2013

काश!

काश!
इन्सान भी होता
वक़्त की तरह
तो कहीं से भी हो कर
गुज़र सकता ....
खुद ही मिल जाती
अमरता ....
न रुकता कहीं
न कभी थकता ....
काश!
इन्सान भी
वक़्त की तरह होता। 

©यशवन्त माथुर©

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर ...काश इंसान भी वक्त की तरह होता ..

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  2. काश इन्सान भी वक्त की तरह होता,बहुत ही प्रभावी रचना।

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  3. सोच तो गहरी है ....:)

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  4. सच में ऐसा होता तो क्या होता...?गहन सोच..

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  5. इंसान तो वह शै है जो वक्त के भी पार जा सकती है..खुद को जाने तो सही..

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  6. बेहतरीन रचना

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  7. न रुकता कहीं
    न कभी थकता ....
    काश!
    इन्सान भी
    वक़्त की तरह होता।

    तब वो इन्सान कहाँ होता

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  8. आज तो इंसान वक्त से भी तेज़ बदल जाता है !!!

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