सबने बना रखी है
अपनी अपनी एक दुनिया
जिसके भीतर
सिमटे रहते हैं लोग
कृत्रिम हंसी का
मुखौटा लगाए
न बाहर जा पाते हैं
अपनी धुरी से
न आने देते हैं भीतर
बंद दरवाजों को साथ लिये
अपने परिपथ पर
गोल गोल घूमती
सबकी अपनी अपनी दुनिया
अनजान है
आस-पास के
बदलावों से
कोई मीलों आगे है
कोई मीलों पीछे
कोई अभी सपना है
कोई हकीकत
काश!
दुनिया गोल न होती
टेढ़ी मेढ़ी होती
रंग बदलती
इंसानी सोच की तरह
तो कर सकती अतिक्रमण
और जान सकती
अपने दायरे के
बाहर का हाल ।
~यशवन्त माथुर©
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
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09 June 2013
काश! दुनिया गोल न होती
प्रकाशन समय
11:10:00 am
प्रस्तुतकर्ता
यशवन्त माथुर (Yashwant Raj Bali Mathur)
श्रेणी
पंक्तियाँ,
बस यूँ ही



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दुनिया गोल नहीं होती तो हम भी अपनी धुरी में कैद नहीं होते हम स्वतंत्र होते तो कितना अच्छा होता बहुत खूबसूरत सोच अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteकाश ऐसा ही होता
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteकाश!
ReplyDeleteदुनिया गोल न होती
bahut sundar
काश!
ReplyDeleteदुनिया गोल न होती
टेढ़ी मेढ़ी होती
रंग बदलती
इंसानी सोच की तरह
तो कर सकती अतिक्रमण
और जान सकती
अपने दायरे के
बाहर का हाल
बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति
बेहतरीन
ReplyDeletebahut achha likha hai, ek sandesh ki hame apne dayre se nikal kar dekhna chahiye, sochna chahiye aur karna chahiye.
ReplyDeleteshubhkamnayen