जाने क्यों इतना बहता है पानी
अपनी कल-कल में आज रचता
मन में कोई कहानी
ताल तलैया,नदियां सागर
कल्पना के सीप समा कर
कुछ छोड़ किनारे पर करता
रह रह कर अपनी मनमानी
भावना की नौका चलती
सैर कराकर हर कोने की
जब आ किनारे पर लगती
तब भी थमता नहीं पानी
जाने क्यों इतना बहता है पानी
अपनी कल-कल में आज रचता
मन में कोई कहानी
~यशवन्त माथुर©
[एक खास दोस्त की फेसबुक फोटो को देख कर
मेरे मन में आए विचार जिसे उनके कमेन्ट बॉक्स से यहाँ कॉपी-पेस्ट किया है। ]
प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©
इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
-
दिन भर घर के बाहर की सड़क पर खूब कोलाहल रहता है और सांझ ढलते सड़क के दोनों किनारों पर लग जाता है मेला सज जाती हैं दुकानें चाट के ठेलों...
-
इधर कुछ दिनों से पापा ने सालों से सहेजी अखबारी कतरनों को फिर से देखना शुरू किया है। इन कतरनों में महत्त्वपूर्ण आलेख और चित्र तो हैं ही साथ ह...
-
जीवन के अनवरत चलने के क्रम में अक्सर मील के पत्थर आते जाते हैं हम गुजरते जाते हैं समय के साथ कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं कभी शून्य से...
-
खबर वह होती है जो निष्पक्ष तरीके से सबके सामने आए और पत्रकारिता वह है जो जिसमें सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस हो। जिसमें कुछ भी छुपा...
-
बोल निराशा के, कभी तो मुस्कुराएंगे। जो बीत चुके दिन, कभी तो लौट के आएंगे। चलता रहेगा समय का पहिया, होगी रात तो दिन भी होगा। माना कि ...
-
इसके पहले कैसा था इसके पहले ऐसा था वैसा था, जैसा था थोड़ा था लेकिन पैसा था। इसके पहले थे अच्छे दिन कटते नहीं थे यूँ गिन-गिन। इसके प...
-
कुछ लोग जो उड़ रहे हैं आज समय की हवा में शायद नहीं जानते कि हवा के ये तेज़ झोंके वेग कम होने पर जब ला पटकते हैं धरती पर तब कोई नहीं रह प...
-
हम सिर्फ सोचते रह जाते हैं ख्यालों के बादल आ कर चले जाते हैं Shot by Samsung M30s-Copyright-Yashwant Mathur© मैं चाहता हूँ...
-
फ्यू चर ग्रुप की बदहाली की खबरें काफी दिन से सुनने में आ रही हैं और आज एक और खबर सुनने में आ रही है कि आई पी एल 2020 की एसोसिएट -स्पॉन्स...
-
किसान! खून-पसीना एक कर दाना-दाना उगाता है हमारी रसोई तक आकर जो भोजन बन पाता है इसीलिए कभी ग्राम देवता कभी अन्नदाता कहलाता है लेकिन ...
acchi kavita
ReplyDeleteतरल मन से लिखी कविता.
ReplyDeleteतरल मन से लिखी कविता.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २५ /६ /१३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteभावना की नौका चलती
ReplyDeleteसैर कराकर हर कोने की
जब आ किनारे पर लगती
तब भी थमता नहीं पानी
ज्ञान देरी से मिली
हार्दिक शुभकामनायें
sundar rachna ...kyun bahta hai paani
ReplyDeleteउत्क्रुस्त .
ReplyDeleteकौन जान पाया पानी की रवानी
ReplyDeleteपानी का तो प्रकृति है बहना। बस ये प्रवाह कष्टदायी ना हो, इसीलिए संतुलन और सीमाबंधन की ज़रूरत पड़ती है.
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई।