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23 May 2021

बादल

Image:Yashwant Mathur©
मोबाइल के टावरों...
ऊंची इमारतों की छतों को
छूकर निकलने वाला
बादलों का हर एक टुकड़ा
स्पीड ब्रेकर की तरह
बीच राह में आने वाली
टहनियों
और इक्का दुक्का पत्तियों से
बची खुची सांसों का हाल
पूछता हुआ
निकल लेता है
सूखी पथरीली
रेतीली धरती पर
बरसने को
जिसकी तह में
हरी घास की जड़ें नहीं
अब मिलते हैं
सिर्फ
विलुप्त होती
सभ्यता के अवशेष।

-यशवन्त माथुर©
19052021

9 comments:

  1. बहुत सुंदर,भावपूर्ण गहन अर्थ समेटे हुए सराहनीय अभिव्यक्ति।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. सुंदर!
    गहन भाव , अवसाद से भर जाता है मन जब पर्यावरण की ये दुर्गति देखते हैं । सार्थक सृजन।
    साधुवाद।

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  4. दूरगामी नजर से लिखी गई प्रभावशाली रचना, वाकई जब सारे पेड़ कट जाएंगे तो सभ्यता कहाँ बचेगी !

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  5. खूबसूरत रचना

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  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता,यशवंत भाई।

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  7. सभ्‍यता के अवशेष ढूंढ़ती एक उत्‍कृष्‍ट रचना-----वाह

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  8. सच कहा आपने यशवंत जी,अगर ऐसे ही पर्यावरण की अनदेखी की गई,तो कुछ सालों के बाद सभ्यता के अवशेष ढूँढने पड़ेंगे।बहुत शुभकामनाएँ आपको।

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  9. जी बहुत ही सार्थक रचना।

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