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10 March 2021

दो शब्द ...

दो शब्द... 
सिर्फ दो शब्द 
हम लिखे देखते हैं 
किसी पुस्तक की 
प्रस्तावना के शीर्षक में... 
या साक्षी बनते हैं आग्रह के 
जो किसी मंच संचालक द्वारा 
किया जाता है 
किसी सभा के 
मुख्य अतिथि से ... 
लेकिन क्या 
दो शब्द 
सिर्फ दो शब्द ही होते हैं?
क्या दो शब्दों में 
हम समेट सकते हैं 
भावनाओं का विस्तार 
आदि और अंत?
शायद नहीं...
नहीं... बिल्कुल नहीं 
क्योंकि.. दो शब्द 
सिर्फ दो शब्द मात्र ही नहीं होते 
क्योंकि... इनमें समाई होती है 
समुद्र की अथाह गहराई 
रेगिस्तान की रेत 
दलदली धरती 
सूरज की रोशनी 
पूर्णिमा और मावस की 
अनगिनत उजली-स्याह रातें 
जिनके दो शब्दों में ढलते ही 
आकार लेता है 
एक या दो पृष्ठों का 
अतीत और वर्तमान.. 
जिसके उपसंहार में 
रख दी जाती है 
भावी इतिहास की नींव 
और उसकी 
पहली ईंट। 

-यशवन्त माथुर©
10032021

7 comments:

  1. अतीत और वर्तमान..
    जिसके उपसंहार में
    रख दी जाती है
    भावी इतिहास की नींव
    और उसकी
    पहली ईंट।
    गहन अर्थ समेटे हुए सटीक एवं
    बेहतरीन अभिव्यक्ति यशवंत जी।

    सादर।

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  2. बहुत सही कहा यशवन्त जी आपने ।

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  3. दो शब्दों में समाया होता है अतीत का आधार जिस पर रखी जानी है भविष्य की इमारत, वर्तमान में कहे दो शब्द वाकई मात्र दो नहीं होते, जैसे 'रब' में 'सब' समाया है।

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  4. बहुत सुन्दर

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