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22 April 2012

पृथ्वी दिवस पर.......

बुद्धिजीवियों की
कालोनी से गुजरते
उस रस्ते पर
मैंने देखा
कोलतार की
वह सड़क
चौड़ी
की जा रही थी
बूढ़े पेड़ों को
उनकी
औकात बताई जा रही थी
और उस किनारे
पार्क से
आ रही थी आवाज़--
सड़क के
सामने वाले घर मे
गुज़र करने वाले
सज्जन
माइक पर
कर रहे थे आह्वान
पृथ्वी को बचाने का
पृथ्वी दिवस मनाने का।


19 comments:

  1. पृथ्वी को बचाने का
    पृथ्वी दिवस मनाने की

    सुंदर प्रस्तुति,बहुत बढ़िया रचना.....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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  2. आपकी रचना ने वास्तविक स्थितियों पर कटाक्ष करते हुए सुन्दर सन्देश प्रेषित किया है!

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  3. पर्यावरण सुरक्षा के प्रति सवेंदनशील बनाती एक अच्छे कविता है |

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  4. पृथ्वी को बचाने का आह्वान आप से बेहतर कौन कर सकता है

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  5. पृथ्वी दिवस की सुभ कामनाएं , सामयिक समीचीन प्रसंग ....

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  6. पेड़ कटे तालाब पटे,
    अब जंगल से सटते जाते |
    कंक्रीट की दीवारों में,
    पल पल हम पटते जाते |

    आबादी का बोझ नही जब,
    सह पाती छोटी सड़कें -
    कुर्बानी पेड़ों की होती
    बार बार कटते जाते ||

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  7. दिखावे का ज़माना है...स्वार्थी लोगों के बोझ से पृथ्वी के कंधे झुके जा रहे हैं....

    सार्थक रचना यशवंत.....
    सस्नेह.

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  8. बस भाषण में ही धरती बचाने की गुहार होती है असलियत तो कुछ और ही होती है ... अच्छी रचना ॥

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  9. बिल्कुल सही कहा आपने...सब कुछ भाषणबाजी तक ही सीमित है.

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  10. ठीक वैसे ही जैसे वृक्षारोपण होता है इन लोगों का ...फोटो खिंचाई पौधे के साथ और फिर पौधे रामभरोसे !

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  11. vilkul sahi kaha Yashvant.aaj kal yahi horaha hai..sundar rachana..

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  12. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  13. waah yashwant bahut hi accha.

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  14. कथनी और करनी में हमेशा फर्क होता है। भाषण देना तो बहुत आसान है मगर कही गयी बात पर अमल करना शायद भाषण देने वालों के लिए बहुत मुश्किल होता है। सार्थक रचना....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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  15. ye lines....save trees ka add ban sakti h.... bohot pyara likha h :)

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  16. सुन्दर कटाक्ष...
    पूर्ण सहमत हूँ नुपूर जी की टिप्पणी से..
    सादर

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  17. काश वह 'बुद्धजीवी ' अपनी ही बात का मर्म समझ पाते.....काश !!!!!!

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