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05 July 2012

बारिश के पहले,बारिश के बाद

बारिश के पहले 

बारिश होने से पहले
सूखे की संभावना के साथ
दोनों हाथ ऊपर फैलाए
अन्नदाता मांग रहा था भीख 
झुलसती क्यारियों में
नये जीवन की।

बारिश होने से पहले
हरियाली हीन
सड़कों पर
चलते हुए
मेरे चटकते तलवे
चाह में थे
ठंडक की।

बारिश  के बाद  

बारिश होने के बाद
अन्नदाता खुश है
तृप्त क्यारियों की
अनकही चमक देख कर
झरते मोतियों की
बिखरती माला देख कर
मानो मन के मनके
खुश हों
नये जीवन में
बेसुध हो कर।

बारिश होने के बाद
अब मैं फिर से चाहता हूँ
पहले जैसा सब कुछ
तलवों पर लगी
काई और कीचड़ देख कर
उतरे चेहरे के साथ
सोच रहा हूँ
ये क्या हो गया ?


अन्नदाता =किसान 
मेरा /मैं  =आम शहरी नागरिक 

©यशवन्त माथुर©

31 comments:

  1. दोनों दृश्य और सम्बद्ध भाव/मानसिकता का सफल चित्रण!

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  2. बिल्‍कुल सही ... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  3. सच कहा.....
    मानव स्वभाव ही ऐसा है...

    सुन्दर लिखा यशवंत
    सस्नेह

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  4. चाहे बारिश के पहले हो या चाहे बारिश के बाद,
    हर हांल होती परेशानी,चाहे करो जितनी फ़रियाद,,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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    Replies
    1. चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट पर यह टिप्पणी भी आई -

      बारिश से पहले घटा, नहीं कभी भी धीर |
      बारिश की देखे घटा, होता धीर अधीर ||


      बारिश पर विद्वान ने, लिया सही स्टैंड |
      मन को समझाना कठिन, समझो मेरे फ्रेंड ||

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  5. बारिश होने के बाद
    अब मैं फिर से चाहता हूँ
    पहले जैसा सब कुछ
    तलवों पर लगी
    काई और कीचड़ देख कर
    उतरे चेहरे के साथ
    सोच रहा हूँ
    ये क्या हो गया ?
    सुबह - सुबह जब मैं बाहर निकली तो यही भाव थे ..... लेकिन शब्दों में ढाल ना सकी .... !
    अभी शब्दों में ढाला देख अच्छा लग रहा है ... आभार .... मन प्रफुलित हो गया .... !!

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  6. हर तरह से परेशानी .... किसी तरह चैन नहीं ... बारिश हो तो और न हो तो भी ... :):)

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  7. waah ..sundar bhaav man ke ...
    shubhkamnayen .

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  8. बहुत बढ़िया!
    शेअर करने के लिए आभार!

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  9. बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

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  10. यह है शुक्रवार की खबर ।

    उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।

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  11. इंसान की फितरत ही ऐसी है..कभी संतुष्ट ही नही होपाता..सुन्दर भाव है यशवंत..

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  12. बढ़िया प्रस्‍तुति ... आभार

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  13. यशवंत जी , एकदम सही चित्रण किया है आपने... बारिश के पहले और बाद का..! :-)

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  14. Again beautiful post... :)

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  15. मानव स्वभाव है ही ऐसा
    संतुष्ट ही नहीं होता...
    क्या करे..
    यथार्थ कहती रचना..
    बहुत सुन्दर:-)

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  16. पल पल बदले मन के भाव...... सुंदर

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  17. garmi me hriday barish ke liye kis kadar vyathit hota hai is bhav ko sundarta se chitrit kiya hai aapne.badhai.

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  18. बहुत बढ़िया....

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  19. अपने मन से बारिश का मन मिलाना
    वाकई काम बहुत मुश्किल है
    उतना ही मुश्किल है मनों को समझाना !!!

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  20. भिन्न परिस्तिथियाँ भिन्न आयाम....सुन्दर।

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  21. सुखी धरती को भी बारिश का हम इंसानों से ज्यादा इंतज़ार रहता है ..
    बहुत ही बढ़िया रचना ..

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  22. हो तो परेशानी न हो तो परेशानी इंसान वक़्त को प्रकृति को भी कैद करना चाहता है असफल होने पर शिकायत करता है बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  23. बहुत ही बढ़िया गहन भावभिव्यक्ति....

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  24. jo hamein mil jata hai, humein khush nahin rakh pata

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