प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

19 July 2012

क्षणिका ,,

बादलों के पर्दे में
लुक छिप कर
डूबता सूरज
लग रहा है
जैसे कह रहा हो
अपने मन की बात
कि अंत
सिर्फ यही नहीं है।


©यशवन्त माथुर©

24 comments:

  1. वो सुबह जरूर आयेगी....

    ReplyDelete
  2. हाँ एक और सवेरा है.......

    बहुत सुन्दर यशवंत
    सस्नेह

    ReplyDelete
  3. well said!
    सूरज का डूबना...एक नयी सुबह की आस भी है... :-)

    ReplyDelete
  4. गतिमान सूरज का सन्देश अच्छा लगा .

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
    बहुत सुंदर क्षणिका ,,,,,,


    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

    ReplyDelete
  6. अनंत ...अनवरत ...
    सच कह रहा है ...!!
    शुभकामनायें

    ReplyDelete
  7. bilkul sahi kaha aapne.sundar prastuti.

    ReplyDelete
  8. डूबता सूरज एक नए प्रभात का आगाज होता है ......निरंतर चलता पथिक विश्राम की वेला को अवसान समझने की भूल करता है .....

    ReplyDelete
  9. हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया ....

    ReplyDelete
  10. बहुत सही कहा ... बेहतरीन भाव

    ReplyDelete
  11. डूबता सूरज एक सन्देश की तरह होता है..
    जो कहता है की मै कल फिर आऊंगा
    और फिर उसी तेज से चमकूँगा
    बेहतरीन प्रेरनादायी रचना
    :-)

    ReplyDelete
  12. सूरज कभी डूबता ही नहीं, दिखता भर है कि डूब रहा है..चंद शब्दों में सुंदर संदेश !

    ReplyDelete
  13. जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!

    ReplyDelete
  14. कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  15. बहुत खूब !

    ReplyDelete
  16. सच कहा अंत कोई कहाँ देख पाता है ..
    बहुत सार्थक चिंतन ..

    ReplyDelete
  17. वाह,क्या बात है

    ReplyDelete
  18. सच है जिंदगी और भी है ... बहुत बड़ी जिसका पता भी नहीं है ...

    ReplyDelete
  19. sach kaha kabhi kabhi jo dikhta hai vo hota nhi, jo ant lagta hai vo ek nai shuruat hoti hai. sunder goodh rachna


    shubhkamnayen

    ReplyDelete

Popular Posts

+Get Now!