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05 March 2013

वो पल....

बचपन में
कभी
जिन गलियों से
गुज़रा करता था 
वो गलियाँ
वो सड़कें
अब बन चुकी हैं
कहानी
एक बीते दौर की
और आज
जब भी करता हूँ याद
उन बीते पलों को 
कबूतरखाने जैसा
यह ठौर
निकलने नहीं देता
खुद की जद से।

©यशवन्त माथुर©

12 comments:

  1. जीवन ने परिवर्तन तो होते ही रहते है वस यादें रह जाती है.

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  2. जीवन ने परिवर्तन तो होते ही रहते है वस यादें रह जाती है.

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  3. बढ़िया है प्रिय यशवंत-

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  4. पर निकलना तो पड़ता है .... सुन्दर प्रस्तुति

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  5. यशवंत जी ठीक कहा आपने आपका इंतज़ार है
    http://www.saadarblogaste.in/2013/03/15.html

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  6. कबूतरखाने जैसा
    यह ठौर
    निकलने नहीं देता
    खुद की जद से।
    बहुत ही गहरी बात !!
    शुभकामनायें !!

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  7. Yaadein to hoti hi yad rakhne k liye h :)

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (06-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  9. अतीत की सुनहली यादें हमें अक्सर घेर लेती हैं ...
    सुन्दर रचना !

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  10. apni zaden bhi to hamne khud hi baandh rakhi hain na....

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