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22 May 2020

हसरत पूरी हो उसे पा जाने की.....(राहुल श्रीवास्तव)

ऐसा नही है कि मुझमें ताक़त नही थी, 
किस्मत बदल पाने की। 
हौसले के साथ आसमानों से, 
आगे उड़ जाने  की। 

समझ न पाया मंजिलें 
या समझ  न थी समझाने  की। 
कुछ ग़लतियाँ मेरी ही थीं, 
कुछ दूसरों के बदल जाने की। 

मुकद्दर  मेरा ठहरा हुआ है अभी, 
वो आ जाए शायद एक दिन....
और हसरत पूरी हो उसे पा जाने की। 

-राहुल श्रीवास्तव ©
लखनऊ । 

(रचनाकार एक प्रतिष्ठित कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी हैं)

1 comment:

  1. जब मंजिल की समझ आ जाएगी, समझाने की कला भी आ ही जाएगी, अपनी गलतियों को जो स्वीकार लेता है,उसे दूसरों के बदलने की फ़िक्र नहीं सताती ... और किस्मत उसके हाथ में होती है हर पल

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