ज़िन्दगी का क्या पता
कल रहे न रहे
रहने दो कुछ शब्द
कहे- अनकहे
एक छोटी सी डोर है
जब तक उड़ रही है
छू रही है आसमां
क्या पता कब
बीच से कट कर
मझधार में गिर पड़े।
-यशवन्त माथुर©
12062020
-यशवन्त माथुर©
12062020
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
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