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09 August 2013

रास्ता ही मंज़िल है

आदरणीया अनुपमा पाठक जी की आज की पोस्ट के शीर्षक से प्रेरित पंक्तियाँ 

रास्ता ही मंज़िल है
और हर मंज़िल
एक रास्ता है
नज़रों से ओझल
खुशी के फूलों से आती
मन भाती खुशबू को
ढूंढ कर
मन के किसी कोने मे
सहेज लेने की
बीते कल के सपनों के
आज में बदलने की

कुछ पूर्व निश्चित है
कुछ अनिश्चित है
कभी दोराहे,तिराहे
और चौराहों को
हम पहचानते हैं
कभी अनजान रास्ते भी
हमीं को जानते हैं

कभी रास्तों पर
चलते चलते
अपने पड़ाव
पर पहुँचने की
जल्दी होती है
कभी मन भटका कर
अनजान मंज़िल
इंतज़ार कर रही होती है

वक़्त की तेज़ी के साथ
पल पल गुजरते
नए रास्ते
काँटों से सजे
कभी फूलों से भरे

कुछ सीख कर
समझ कर
जीवन के भंवर में फँसकर
सर उठाकर
फिर निकलना ही
इसका हासिल है

हर रास्ता ही मंज़िल है ।

~यशवन्त माथुर©

6 comments:

  1. बहुत बढिया......राह भी तुम हो, मंजिल भी तुम बनो

    पंछी सा उडान भरो,हौसला बुलंद करो

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  2. शुभप्रभात
    बहुत सुंदर पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. sach hai har raste par nai manjil hai aur har manjil se naya rasta.

    achha likha hai

    shubhkamnayen

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  4. हर कदम मंजिल की ओर ले जाता है..चाहे भटका कर या सीधे सीधे..सुंदर रचना !

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  5. रास्ता तय करना भी खुबसूरत एहसास है .....

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