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18 March 2013

लौट आता हूँ.....

बंद कमरे से निकल कर
बाहर की दुनिया में
जब भी जाता हूँ 
एक नज़र देखता हूँ
लौट आता हूँ

नहीं मुझ में ताकत
कडवे सच से
रु ब रु होने की
नहीं मुझ को तमन्ना
खतम कहीं पे शुरू होने की

चारदीवारी के बाहर
माहौल सब एक जैसा है
कहीं कोई रोता है
कोई हँसता है

कोई दीवालिया है
कोई धन्ना सेठ है
इन्सानों का  तो बस
उतना ही बड़ा पेट है

फिर भी भूख से रोता
बचपन नहीं देख पाता हूँ 

बंद कमरे से निकल कर
बाहर की दुनिया में
जब भी जाता हूँ 
एक नज़र देखता हूँ
लौट आता हूँ

~यशवन्त माथुर©

5 comments:

  1. !!
    दर्द दिख रहा है !!
    अपने आप पर
    गुस्सा आता है कि
    कुछ ना कर पाने की
    लाचारगी क्यूँ है ....
    शुभकामनायें !!

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  2. बहुत सुन्दर सम्वेदनापूर्ण रचना...शुभकामनायें!

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  3. कोई दीवालिया है
    कोई धन्ना सेठ है
    इन्सानों का तो बस
    उतना ही बड़ा पेट है----bahut sahi bhaw

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  4. बंद कमरे से निकल कर
    बाहर की दुनिया में
    जब भी जाता हूँ
    एक नज़र देखता हूँ
    लौट आता हूँ

    aaj ke mahol ke kadwe sach ko darshati ek achhi rachna.

    shubhkamnayen

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