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11 September 2010

कविता मेरी दृष्टि में.....(मेरी ५१ वीं पोस्ट.)

भाव ना हों अगर तो क्या होगा
भावों में ना बहें तो क्या होगा
ये मन की भावुकता है-
उतर आती है जो शब्दों में
ये शब्द अगर ना हों तो
कविता का क्या होगा.

मुझे नहीं पता
क्या मात्रा
क्या हलन्त
क्या पूर्ण विराम-
नहीं पता
मुझे नहीं पता
व्याकरण
और उसके बंधन
बस इतना पता है
कविता है-
मेरा अंतर्मन

कविता
जो बन जाती है कभी
सुर-सरगम
ढल जाती है
गीतों में
एक आवाज़ बन कर
देती है
अ-भावों को भी भाव
सहज सरल सरस
और सार्थक बनकर

मैं
उस कविता को गुनगुनाता हूँ
जो भावों में बह जाती हो
शब्दों के साज पर सज कर
कुछ कहती हो
कह जाती हो.



(जो मेरे मन ने कहा....)

3 comments:

  1. राजेन्द्र जी
    इस पोस्ट के प्रकाशित होने के २ मिनट के भीतर आप की त्वरित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार!

    ReplyDelete
  2. क्या बात है यशवंत जी, बहुत ही सुंदर भाव और उतने ही खूबसूरत शब्द...

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