सुनो! ओ पाखंडी-
दुनिया वालों
ध्यान से सुनो!
चाहे जितने भी कांटे
तुम बिछालो मेरी राह में
चाहे जितने भी आंसू
तुम दे दो मुझ को
ये न समझना कि
मैं हार गयी हूँ
हाँ
कुछ पल को रूकती हूँ
ठिठकती हूँ
हंसती हूँ-
तुम्हारी सोच पर
कितने मूर्ख हो तुम
जो अब तक
मुझ को अबला समझते
आ रहे हो
वो बल
वो सामर्थ्य है मुझ में
असीमित दर्द सह कर भी
मैं
दुनिया को-
तुम को -
जन्म देती हूँ
और तुम
तुम मुझ को
मार देते हो
दुनिया में आने से पहले
शायद इसलिए
कि मैं नारी हूँ!
(जो मेरे मन ने कहा.....)
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bahut hi maarmik achhi sandesh deti kavitaa.
ReplyDeleteNice poem, revealing the bitter truth of life.
ReplyDeleteयह हकीकत है...इस समाज की..अभी भी जन्म देने वाली नारी की उसके जन्म से पहले उसी की हत्या कर दी जाती है... बहुत सुंदर...भाव प्रधान रचना...
ReplyDeleteकविता तो अच्छी है यशवंत जी... लेकिन आपको जिस फेसबुक मित्र ने इस तस्वीर में टैग किया है, उसके एवज में आपको भी इतने मैनर्स दिखाने चाहिए थे कि उनकी तस्वीर को अपने ब्लॉग पर लेते समय कम से कम उन्हें दो शब्द में क्रेडिट ही दे देते... अव्वल तो परमीशन लेकर ही किसी की वॉल से कोई चीज शेयर करनी चाहिए।
ReplyDeleteबेनामी जी,
ReplyDeleteये तस्वीर इन्टरनेट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है;और जो चीज़ सार्वजनिक रूप से किसी को भी सुलभ हो उस के लिए मुझे नहीं लगता किसी व्यक्ति विशेष की अनुमति की तब तक कोई आवश्यकता है जब तक की वह उस व्यक्ति की मौलिक अभिव्यक्ति न हो.उदाहरण के लिए अगर आप मेरी किसी कविता को अपने नाम से कहीं प्रकाशित करेंगे तो मुझे ऐतराज़ होगा क्योंकि ये मेरी मौलिक रचना है किन्तु यदि मेरी कोई तस्वीर जिसे खुद मैंने कहीं से लिया है अगर आप प्रस्तुत करेंगे तो ऐतराज़ होने का कोई प्रश्न ही नहीं है.
रही बात क्रेडिट देने की तो शायद आप ने इस ब्लॉग पोस्ट के आरम्भ को नहीं देखा.ज़रूरी नहीं कि हर मित्र का नाम सार्वजनिक ही किया जाए.
फिलहाल उक्त फोटो और प्रस्तावना को मैंने हटा दिया है.
आदरणीय अरविन्द जी,दिव्या दीदी और वीना जी आप के उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल से शुक्रिया.
ReplyDeletefull of emotion
ReplyDeletebahut hi sundar kavita hai aapki....
ReplyDeleteyun hi likhte rahein...divya ji ke saujanya se yahan tak aana hua ...
aata rahoonga....
benami ji bahut naraaz lagte hain..
aisa kya kar diya aapne.????
Divya ji ne kuchh gaat nahi kaha tha aapke baare me... i loved the blog n specially this poem... keep writing.. :)
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