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20 September 2010

मधुशाला...

आज फिर मन मचल रहा है
मय का प्याला पीने को
दबी छुपी कुछ बातें मन की
मधुशाला में कहने को
दुनिया में कोई नहीं है
मेरी थोड़ी सुनने वालाअपनी कुछ न कहती मुझ से
सुनती मुझ को मधुशाला.

5 comments:

  1. बहुत ही अच्छा आग़ाज़...और बहुत सुंदर

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  2. मधुशाला तक तो ठीक है पर ये मधु ठीक नहीं

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  3. आदरणीया वीना जी,भास्कर जी और प्रिय माधव बहुत बहुत धन्यवाद.

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  4. सुन्दर पंक्तियाँ...शुभकामनायें ।

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  5. आदरणीया दिव्या जी ,बहुत बहुत धन्यवाद.

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